सूक्ष्म सिंचाई / Micro Irrigation – महत्त्व

Part 3

हम सूक्ष्म सिंचाई के बारे में बहुत कुछ सुनते हैं पढ़ते हैं पर उसे उपयोग में लाने में कतराते हैं इसके बहुत सरे कारण हैं जिसमे सबसे बड़ी वजह ये है की हम इसके महत्त्व को नहीं समझते और इसे उपयोग कैसे करना है ये भी हमें नहीं पता होता है। जो इसके महत्त्व के बारे में जानते हैं वो इसे इस्तिमाल भी कर रहे हैं चूंकि वास्तव में, खेती को टिकाऊ, लाभदायक और उत्पादक बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। आज मैं आपके साथ सूक्ष्म सिंचाई के महत्त्व के बारे में अपने कुछ अनुभव साझा करुँगी।

सिंचाई के लिए उपलब्ध जल का कुशल उपयोग किसानो के लिए एक बड़ी चुनौती है लेकिन अगर सूक्ष्म सिंचाई जैसे नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जाये तो किसान भविष्य में होने वाली पानी की कमी से कुछ हद तक बच सकता है । सिंचाई के पानी का कुशल उपयोग केवल अत्यधिक कुशल सिंचाई विधियों जैसे सूक्ष्म सिंचाई को अपनाने से ही संभव है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के साथ कृषि में पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाता है। सूक्ष्म सिंचाई की लगभग 85-90 प्रतिशत पानी के उपयोग की दक्षता/ efficiency है जो हमारे पुराने सिंचाई के तरीको में से पानी के उपयोग की सबसे भतार efficiency है । सूक्ष्म सिंचाई से पौधों को सही मात्रा में, सही समय पर और उचित स्थान पर पानी मिलता है।

जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी के इस दौर में सूक्ष्म सिंचाई फसल की उपज बढ़ाने साथ ही पानी, उर्वरक और श्रम आवश्यकताओं को कम करने में मदद करती है। टपक सिंचाई में उतने ही जल एवं उर्वरक की आपूर्ति की जाती है जितनी फसल के लिए आवश्यक होती है ।

श्रम की लागत हमें ज्यादातर खेत को पौधों के लिए तैयार करने में , बुआई करने में , पानी देने में , खाद देने में और खरपतवार हटाने में लगती है । पर सूक्ष्म सिंचाई की मदद से हम पानी, खाद और खरपतवार हटाने में लगने वाली श्रम आवश्यकताओं को कम कर देते हैं ।  चूंकि  एक बार जब सिस्टम लग जाता ह तो पानी और खाद उसी सिस्टम की मदद से पौधों को दिया जाता है , और चूंकि  पानी और खाद पौधों को उनकी जड़ों के पास देते हैं तो 70-80 प्रतिशत खरपतवार काम हो जाती है । सूक्ष्म सिंचाई की मदद से वाष्पीकरण भी कम होता है चूंकि पानी सिर्फ पौधों को दिया जाता है ।

ड्रिप इरीगेशन मिट्टी को सख्त होने से भी बचाता है ये बात मैंने पढ़ी तो थी पर इसे वास्तव में देखा भी , और ये तब संभव हुआ जब एक बार हमारे संस्थान के टेक्नोलॉजी पार्क जो किसानो को प्रशिक्षण देने के लिए बनाया गया है वहाँ खुदाई चल रही थी मिनी ट्रेक्टर जिसे Tillers Tractors भी कहते हैं की सहायता से मिट्टी को तैयार किया जा रहा था तब मैं भी किसी काम से वही पर थी तब देखा की जिस जगह ड्रिप लगी हुई थी वहाँ Tillers ट्रेक्टर बड़ी आसानी से आगे बढ़ रहा था ऐसा लग रहा था मनो उसे खुदी हुई मिटटी में चलाया जा रहा हो और जहां खुला पानी लगाया जाता था वहाँ ज्यादा महनत की जरूरत थी , इसे देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता था की ड्रिप लगाने के बाद मिट्टी सख्त नहीं होती है और मिट्टी में हवा जाने के लिए जगह रहती हे जिसे हम soil pores भी कहते है, ये जितने ज्यादा होते हैं हमारे पौधों की जड़े उतनी ही स्वस्थ रहती हैं । ड्रिप इरीगेशन की सहायता से जब पानी लगाया जाता है तो पानी बून्द बून्द करके गिरता है जिसकी वजह से मिट्टी पानी को बहुत ही आराम से सोखती है जिससे soil pores बंद नहीं होते हैं।

कुल मिलाकर देखें तो सूक्ष्म सिंचाई एक बहतर बागवानी के लिए एक भतार विकल्प है जो हम सभी खेती से जुड़े लोगो को अपनाना होगा, ताकि हम एक बहतर उपज लें।

जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी के इस दौर में सूक्ष्म सिंचाई फसल की उपज बढ़ाने साथ ही पानी, उर्वरक और श्रम आवश्यकताओं को कम करने में मदद करती है। टपक सिंचाई में उतने ही जल एवं उर्वरक की आपूर्ति की जाती है जितनी फसल के लिए आवश्यक होती है ।

श्रम की लागत हमें ज्यादातर खेत को पौधों के लिए तैयार करने में , बुआई करने में , पानी देने में , खाद देने में और खरपतवार हटाने में लगती है । पर सूक्ष्म सिंचाई की मदद से हम पानी, खाद और खरपतवार हटाने में लगने वाली श्रम आवश्यकताओं को कम कर देते हैं ।  चूंकि  एक बार जब सिस्टम लग जाता ह तो पानी और खाद उसी सिस्टम की मदद से पौधों को दिया जाता है , और चूंकि  पानी और खाद पौधों को उनकी जड़ों के पास देते हैं तो 70-80 प्रतिशत खरपतवार काम हो जाती है । सूक्ष्म सिंचाई की मदद से वाष्पीकरण भी कम होता है चूंकि पानी सिर्फ पौधों को दिया जाता है ।

ड्रिप इरीगेशन मिट्टी को सख्त होने से भी बचाता है ये बात मैंने पढ़ी तो थी पर इसे वास्तव में देखा भी , और ये तब संभव हुआ जब एक बार हमारे संस्थान के टेक्नोलॉजी पार्क जो किसानो को प्रशिक्षण देने के लिए बनाया गया है वहाँ खुदाई चल रही थी मिनी ट्रेक्टर जिसे Tillers Tractors भी कहते हैं की सहायता से मिट्टी को तैयार किया जा रहा था तब मैं भी किसी काम से वही पर थी तब देखा की जिस जगह ड्रिप लगी हुई थी वहाँ Tillers ट्रेक्टर बड़ी आसानी से आगे बढ़ रहा था ऐसा लग रहा था मनो उसे खुदी हुई मिटटी में चलाया जा रहा हो और जहां खुला पानी लगाया जाता था वहाँ ज्यादा महनत की जरूरत थी , इसे देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता था की ड्रिप लगाने के बाद मिट्टी सख्त नहीं होती है और मिट्टी में हवा जाने के लिए जगह रहती हे जिसे हम soil pores भी कहते है, ये जितने ज्यादा होते हैं हमारे पौधों की जड़े उतनी ही स्वस्थ रहती हैं । ड्रिप इरीगेशन की सहायता से जब पानी लगाया जाता है तो पानी बून्द बून्द करके गिरता है जिसकी वजह से मिट्टी पानी को बहुत ही आराम से सोखती है जिससे soil pores बंद नहीं होते हैं।

कुल मिलाकर देखें तो सूक्ष्म सिंचाई एक बहतर बागवानी के लिए एक भतार विकल्प है जो हम सभी खेती से जुड़े लोगो को अपनाना होगा, ताकि हम एक बहतर उपज लें।

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