सूक्ष्म सिंचाई / Micro Irrigation
सिंचाई की बात हो और सूक्ष्म सिंचाई का जिक्र ना हो 21 वीं सदी में ऐसा हो ही नहीं सकता । एक वक्त ऐसा भी था जब मैं सिंचाई को बहुत थोड़ा ही समझती थी, बस इतना की किसी खेत में पानी लगाने के लिए बस एक बोर वेल की जरुरत होती है बस एक तरफ से पानी की नाली बनाओ और पूरा खेत पानी से भर दो, जो सिंचाई का तरीका बचपन से देखती आई थी बस उसी से परिचित थी, वर्ष 2009 एक ऐसा वर्ष था जब बागवानी और इससे जुडी टेक्नोलॉजीज/ Technologies को समझने का मुझे मौका मिला । 2009 में मैंने उत्तराखंड की जानी मानी यूनिवर्सिटी गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में अड्मिशन लिया और भाग्यवश मुझे एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग ब्रांच मिली । मेरी ब्रांच एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग होने की एक बहुत अच्छी बात ये थी, की मैं इतने महत्वपूर्ण विषय पानी, सिंचाई और उसके महत्व को समझ सकी। मैं जो सिंचाई बचपन से देखती आ रही थी वो तो बरसो से चले आ रहे पुराने तरीके थे, जिन्हे देखकर ये समझ नहीं आता है की पानी पौधे को दिया जा रहा है या मिटटी को।
बागवानी को मिट्टी के बिना तो किया जा सकता है पर पानी के बिना कर पाना असंभव है। अक्सर कॉलेज में बातो ही बातो में पानी और उसकी भविष्य में होने वाली कमी के ऊपर बात छिड़ जाया करती थी। वो 5 मिनट की बात कब घंटों में बदल जाया करती थी पता भी नहीं चलता था। वो छोटी छोटी चर्चाएँ कब इस बात को लेकर रूचि बन गयी पता भी नहीं चला । पानी की उपलब्धता एक बहुत बड़ी चुनौती है सायद इसी लिए इसे इतना महत्व दिया जाता है । पानी का सिंचाई के लिए उचित ढंग से उपयोग ही भविष्य में होने वाले पानी के संकट को कम कर सकता है । चूंकि हमारे पास जो जल संसाधन है उनका लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा कृषि / सिंचाई में उपयोग होता है । लेकिन ये तभी संभव है जब हम इस विषय को सही ढंग से समझे और इससे जुडी नयी प्रौद्योगिकियों / Technologies को अपनाएँ । कॉलेज में मैंने सिंचाई के अलग अलग तरीको को सीखा और उन तरीको के महत्व को भी समझा । देखते ही देखते कब B.Tech ख़त्म हो गया और कब M.Tech पता ही नहीं चला । ये सब यही ख़त्म नहीं हुआ आगे भी बहुत कुछ ऐसा था जिसने मुझे सिंचाई की तरफ और पानी बचाने के लिए जो एक रूचि थी उसे ख़त्म नहीं होने दिया।
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